17 September 2011

मेघना

आये हो पहाड़ो से
सूखे हुए शहर को
ठंडक पहुँचाने ।
जज्बातों की लू चल रही है
सड़को और विरानो में ।
लुका छिपी का खेल ना खेलना
बादलो के झरोखे से ।
प्यासा पथिक भटक रहा है
पोंछते माथे के पसीने को ।
आस भरे नयनो से देखता जब वो
गरज -गरज जाते हो जोर से ।
पर बूंद भी ना गिरता जब स्नेह का
लौट कर आ के अपने दरबे पे
वो सोचता है ......................!
अब की बार जब भी आना
स्नेह कण की पावस लाकर
जरूर बरसाना मेघना ।